Rohtash Verma

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लेखनी प्रतियोगिता -23-Feb-2023

सांझ

है नित्य...अटल
है शाश्वत ...
गोधूलि वेला!
हाय! कवि मन अकेला!
निहार लालिमा अनुपम को,
स्मृति प्रियतम में
खोती है।
जहां आफताब की किरणें
सोती है।

हाय! शाम
तेरा रूप सलोना है
क्षितिज पार...
तेरा बिछौना है
मानो प्रिय का धर रूप तुम
यादों के बीज हृदय में
बोती है।
जहां आफताब की किरणें
सोती है।

जुल्फें सी
लहराती धेनूएं
रजनी का स्वागत कर रही
हाय! डूबा एक कवि
संध्या में कविता उभर रही
छू लूं या
पकड़ बांध लूं,
होकर पास भी नहीं
होती है।
जहां आफताब की किरणें
सोती है।।

रोहताश वर्मा 'मुसाफ़िर'

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12 Comments

Varsha_Upadhyay

02-Mar-2023 06:37 PM

बेहतरीन

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Rohtash Verma

04-Mar-2023 02:33 PM

Thank you so much ji mem

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Gunjan Kamal

01-Mar-2023 08:43 AM

बहुत सुंदर

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Rohtash Verma

04-Mar-2023 02:33 PM

Thanks very much ❣️

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Sushi saxena

26-Feb-2023 10:35 PM

Nice

Reply

Rohtash Verma

04-Mar-2023 02:33 PM

Ji thank you so much 💐

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